Cable Europe appoints new MD

Submitted by ITV Production on Oct 30

केरल व कर्नाटक के महिला सरपंचों के एक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में कुछ रोचक तथ्य सामने आए हैं. कुछ लोगों का यह विचार था कि महिला सरपंचों का नजरिया भ्रष्टाचार के विरुद्ध है तथा वे सरकार के कार्यक्रमों को पूरी तरह से लागू करती हैं. सर्वेक्षण में यह बात गलत साबित हुई तथा यह तथ्य सामने आया है कि महिलाएं भी धनलोलुप हैं. यदि हम इन सर्वेक्षणों को किनारे रख दें तो भी हम पाएंगे कि महिला और पुरुष सरपंचों में कोई खास अंतर नहीं है.

यह अध्ययन इसको नकारता है कि महिलाओं को संसद या विधानसभाओं में जाने और सत्ता में अधिक भागीदारी मिलने पर भ्रष्टाचार में कमी आएगी, जिसको आधार बनाकर महिला संगठन उनके लिए ३३ फीसदी आरक्षण की मांग कर रही हैं.
वास्तव में इसे साबित करने के लिए दक्षिण भारत के गांवों में इसके सर्वेक्षण की कोई आवश्यकता नहीं थी. अगर हम वर्तमान परिदृश्य पर नजर डालें तो कुछ महिला नेताओं जैसे तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता और बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती, दोनों के मामले में यह कहा जा सकता है कि महिलाएं भी उतना ही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं जितना कि पुरुष.
भारत में यह प्रचलन हो गया है कि किसी भी काम के लिए हमें सुविधा शुल्क देना पड़ता है. यह स्पीड मनी होता है और यदि आप सुविधा शुल्क नहीं देंगे तो आप कोई भी काम नहीं करा सकते. देश की लचर कानून ब्यवस्था का नौकरशाह व राजनीतिज्ञ भरपूर लाभ उठाते हैं लेकिन आम आदमी को कोई भी काम कराने के लिए सुविधा शुल्क का सहारा लेना पड़ता है. मृत्यु या जन्म प्रमाणपत्र लेना हो, या फिर भीड़ भरी ट्रेन में सीट, हमें सुविधा शुल्क देना पड़ता है.
एक अनुमान के अनुसार अपना काम कराने के लिए लोग लगभग १ ट्रीलियन डालर का भुगतान करते हैं जबकि यहां एक अरब लोग रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यहां तो जीने के लिए भी लोगों को सुविधा शुल्क देने की आवश्यकता पड़ रही है. जब भ्रष्टाचार ऊंचे स्थानों पर होता है और उसमें रक्षा व उड़ानों से संबंधित सौदे होते हैं तो उसके कुछ और ही मायने होते हैं.
राजनीतिज्ञों के लिए सुविधा शुल्क अपने मतदाताओं की देखभाल करने व मुख्य रूप से चुनाव लड़ने के काम आता है. विचारधारा के क्षरण के साथ ही चुनाव काफी खर्चीले हो गए हैं. एक सामान्य सर्वेक्षण के अनुसार प्रत्येक सांसद चुनावों में चुनाव आयोग द्वारा तय की गई अधिकतम धनराशि २० लाख से काफी अधिक खर्च करते हैं. एक अनुमान के अनुसार यह आंकड़ा पांच करोड़ से ज्यादा का है. यह आश्चर्य की बात है कि सांसदों के पास इतने पैसे कहां से आते हैं?
पूरे देश को आश्चर्यचकित कर देने वाले जैन हवाला घोटाले की जांच के दौरान एक बहुत अमीर आरोपी से पूछा गया कि वह इतने थोड़े पैसों के लिए ऐसा क्यों किया तो उसका जवाब था कि "राजनीति में किसी भी काम के लिए प्रत्येक समय पैसों की जरुरत होती है और उनके पास पैसे कमाने का कोई पारदर्शी तरीका नहीं होता है". अधिकतर राजनीतिज्ञ व कुछ बड़े वकील राजनीति के अलावा कुछ भी नहीं करते. चुनावों के समय अपने धन का लेखा जोखा प्रस्तुत करने के बाद भी बहुत से राजनीतिज्ञों की आय का स्रोत नहीं पता होता है. आयकर विभाग को इस बारे में गहन छानबीन करनी चाहिए.
केवल राजनीतिज्ञों पर ही दोषारोपण क्यों करें. कुछ पब्लिक सर्वेंट जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, उनमें से अधिकतर नए भारत के प्रतिमान हैं जो वायुयान और बीएमडब्ल्यू कारों पर सवारी करते हैं लेकिन उनकी छवि अच्छी नहीं होती. अपने लाभ के सामने उनके लिए नियम कानून कोई मायने नहीं रखता और वे कर भी अदा नहीं करते. यहां तक की उनमें से अधिकतर आर्थिक सुधारों का लाभ भी उठाते हैं.
ऐसे माहौल में जहां सभी कुछ या तो गैरकानूनी है या अवैध तरीके से प्राप्त किया जा रहा है, ऐसे में नियम कानून की बात करना बेमानी हो गया है. नियम कानून का पालन करने वाले लोग भी जब यह देखते हैं कि भ्रष्टाचारी फल फूल रहे हैं तो वे भी इस दबाव के आगे झुक जाते हैं. इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि भारत में अधिकतर निर्माण अवैधानिक हैं और जब भी कुछ अवैध निर्माणों पर बुल्डोजर चलाया जाता है तो इसे अत्याचार के तौर पर लिया जाता है. बुल्डोजर का सामना कर रहे लोगों के अनुसार "हमने एमसीडी अधिकारियों को इसके लिए पैसे दिए हैं, हमने बिजली और पानी का पैसा दिया है, हमें कभी यह नहीं लगा कि हम गलत कर रहे हैं".
वे आश्चर्यचकित होते हैं कि क्यों सरकार और न्यायालय सैनिक फार्म में स्थित राजनीतिज्ञों के निवासों को ढ़हाने नहीं देते जबकि वे भी उसी तरह अवैध हैं. यदि सरकार भूमि कानून को सरल बना दे तो दिल्ली में चल रहा तोड़फोड़ भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाया गया एक अच्छा कदम है.
यदि केंद्रीय सूचना आयोग के अधिकारी अपने भूत को त्याग दें और लोगों को सब कुछ जानने के अधिकार पर अमल करें तो सूचना का अधिकार इस दिशा में एक प्रभावी कदम साबित होगा. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए योग्य लोग ही ऊंचे पदों पर बैठें. पूंजीपतियों और नौकरशाहों को सजा का भागीदार बनाने से यह संदेश जाएगा कि भ्रष्टाचार कम खतरनाक और अधिक निवेश का उद्यम नहीं है. संयुक्त राष्ट्र में भ्रष्टाचार रोकने के समझौते पर भारत के हस्ताक्षर करने के निर्णय के कारण भारत की छवि और अधिक स्पष्ट हुई है और आने वाले दिनों में इसका प्रभाव दिखाई देगा.
प्रधानमंत्री का यह सुझाव कि सरकार को चुनाव के खर्चे खुद उठाने चाहिए, शुरुआती दौर में यह अच्छा प्रयास है. स्टिंग आपरेशन में दोषी व सदन की गरिमा को धूमिल कर रहे सांसदों को संसद द्वारा उनकी सदस्यता समाप्त किया जाना एक अच्छा उदाहरण है. नए वैश्विक नियम के अनुसार भ्रष्टाचार को अंतरराष्ट्रीय अपराध मानते हुए राष्ट्रों को यह अधिकार दिया है कि वे उन कंपनियों के खिलाफ कारवाई कर सकते हैं जो उनकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएंगी या सुविधा शुल्क देकर ठेके प्राप्त करेंगी. यदि ऐसा होता है तो भ्रष्टाचार के प्रति लोगों का नजरिया बदलेगा. सामान्य कार्यों जैसे कि ड्राईविंग लाईसेंस या गृह लोन लेने के लिए सुविधा शुल्क नहीं देना होगा. जब तक ऐसा नहीं हो जाता तब तक सामान्य आदमी को सुविधा शुल्क देना होगा क्योंकि उन्हें जिंदा रहना है.